संवेगात्मक विकास का अर्थ, परिभाषा एवं सिद्धांत

संवेगात्मक विकास का अर्थ || संवेगात्मक विकास की परिभाषा || संवेगात्मक विकास के सिद्धांत– मानव जीवन मे संवेगों का अत्यधिक महत्व है। मनुष्य अपने भावों को इन्ही संवेगों के माध्यम से व्यक्त करता है। आज हम संवेग और संवेगों की विशेषताएं भी बताएंगे।

संवेग का अर्थ- संवेग को समझने के लिए उसका अर्थ समझना जरूरी है। संवेग इंग्लिश वर्ड इमोशन का हिंदी पर्याय है। ‘Emotion’ शब्द लेटिन भाषा के शब्द ‘Emovere’ से लिया गया है। ‘Emovere’ का अर्थ होता है- Stir up, to agitate या to excite अर्थात – उत्तेजित होना। संवेग एक भावात्मक स्थिति है। यह तब दिखता है जब मनुष्य उद्दीप्त अवस्था में होता है। जैसे क्रोध, भय, चिंता, खुशी आदि उद्दीप्त अवस्थाएं हैं।

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संवेगात्मक विकास का अर्थ, परिभाषा एवं सिद्धांत

दोस्तों अब एक एक करके संवेग की परिभाषा, सिद्धांत, विशेषतायें आदि पर चर्चा करते हैं। यह एक महत्वपूर्ण टॉपिक है ज़रूर मन से पढ़ें।

संवेगात्मक विकास की परिभाषा || संवेग की परिभाषा

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों द्वारा संवेग की अलग-अलग परिभाषाएं दी गयी हैं।

मैक्डूगल के अनुसार संवेग की परिभाषा– 

“ संवेग मूल प्रवृत्ति का केन्द्रीय अपरिवर्तनशील तथा आवश्यक पहलू है। “

वैलेनटाइन के अनुसार संवेग की परिभाषा – 

“ जब भावात्मक दशा तीव्रता में हो जाए, तो उसे हम संवेग कहते हैं। “

आर्थर टी . जर्सीलड के अनुसार – 

“ संवेग शब्द किसी भी प्रकार से आवेश में आने, धड़क उठने तथा उत्तेजित होने की दशा को सूचित करता है। “

रास के अनुसार– 

“ संवेग चेतना की वह अवस्था है जिसमें भावात्मक तत्व की प्रधानता रहती है। “

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वुडवर्थ के अनुसार संवेग की परिभाषा– 

“ संवेग किसी प्राणी की हलचल-पूर्ण अवस्था है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि-

  1. जटिल मानसिक अवस्था है जिसमें शारीरिक व मानसिक पक्षों का समावेश होता है।
  2. किसी व्यक्ति, वस्तु एवं स्थिति के सम्बन्ध में सुख-दुख की अनुभूति कम या अधिक मात्रा में होती है।
  3. संवेग की अवस्था में आंगिक प्रक्रियाओं जैसे नाड़ी, श्वसन, ग्रन्थिस्त्रावों का एक विसरित उद्दीपन होता है।
  4. व्यक्ति की चिन्तन एवं तर्क शक्ति क्षीण हो जाती है।
  5. व्यक्ति आवेगी बल का अनुभव करता है।

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संवेगो के विकास के सन्दर्भ में दो मत है

1- संवेग जन्मजात होते है इस मत को मानने वालो में वके विन तथा हांलिगवर्थ आदि है। हांलिगवर्थ का मानना है कि प्राथमिक संवेग जन्मजात होते है। वाटसन ने बाताया कि जन्म के समय बच्चे में तीन प्राथमिक संवेग भय, क्रोध व प्रेम होते है।

2- संवेग अर्जित किए जाते है – कुछ मनोवैज्ञनिको का मत है कि संवेग विकास एवं वृद्धि की प्रक्रिया के दौरान प्राप्त किए जाते है। इस सम्बन्ध में हुए प्रयोग स्पष्ट करते है कि जन्म के समय संवेग निश्चित रूप से विद्यमान नही होते है। बाद में धीरे-धीरे बच्चा ऐसी निश्चित प्रतिक्रियाएँ करता है जिससे ज्ञात होता है कि उसे सुखद व दुखद अनुभूति हो रही है।

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बच्चों में पाए जाने वाले संवेग

बच्चों में डर, क्रोध, ईर्ष्या, हर्ष, सन्तोष, सुख, स्नेह, उत्सुकता जैसे संवेग पाए जाते हैं।

किशारों में पाए जाने वाले संवेग

किशोरों में डर, चिंता, दुश्चिंता, जलन, क्रोध, नाराजगी, जिज्ञासा, उत्सुकता, दुख जैसे संवेग पाए जाते हैं।

संवेगों की विशेषताएं || संवेगात्मक विकास की विशेषताएं

● संवेग के अनुभव किसी मूल या जैविकीय प्रवृत्ति से जुड़े होते हैं।

● जब भी किसी को कोई संवेगात्मक अनुभव होता है तो उसमें उसके बाद कुछ शारीरिक परिवर्तन भी होता है।

● संवेग किसी भी वस्तु या परिस्थिति के लिए प्रकट किए जाते हैं।

● हर जीवित इंसान में संवेग होते हैं।

● प्रत्येक प्राणी में एक ही प्रकार के संवेग अलग-अलग उत्तेजनाओं से उतपन्न हो सकते हैं।

● संवेग शीघ्रता से उतपन्न होकर धीरे-धीरे समाप्त होते हैं।

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संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

1- परिपक्वता – बालक जितना परिपक्व होता जाता है उसके संवेग उतने ही स्थिर होते जाते हैं। अतः बालक में विकास के साथ-साथ परिपक्वता भी आती जाती है। जिससे संवेग दृढ़ होते जाते हैं।

2- शरीरिक विकास और स्वास्थ्य– बालक के संवेगों में शारीरिक विकास और स्वास्थ्य का प्रभाव पड़ता है। स्वास्थ्य गिरने से संवेग प्रभावित होते हैं।

3- बुद्धि- Hurlock में अपने अध्ययन में पाया कि बुद्धि भी संवेग को प्रभावित करती है। प्रायः देखा जाता है कि सामान्य और कम बुद्धि वाले लोग अपने संवेगों पर नियंत्रण नही कर पाते। जबकि बुद्धिमान व्यक्ति तर्क वितर्क द्वारा ऐसा कर लेता है।

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4- सीखना– सीखने का भी प्रभाव संवेग पर पड़ता है। यह भी संवेग को प्रभावित करने वाले कारक में से एक है।
सीखना दो प्रकार से होता है- अनुबंधन द्वारा व अनुकरण द्वारा।

5- विद्यालयी वातावरण– विद्यालय के वातावरण भी प्रभावित करता है। विद्यालय में बालक साथ मे रहकर पढ़ते हैं। अध्यापक और बालकों से आपस मे सभी संवेग विकसित करना सीखते हैं।

6- साथी सदस्य- अपने साथियों द्वारा भी बालक सीखते हैं। यह भी संवेग को प्रभावित करने वाला कारक है।

7- परिवार- परिवार के सदस्यों का भी प्रभाव पड़ता है। परिवार के सदस्यों से बालक संवेग प्रकट करना सीखता है।

तो दोस्तों हमने इस आर्टिकल में पढ़ा- संवेग का अर्थ, संवेगात्मक विकास का अर्थ, संवेग की परिभाषा, संवेगात्मक विकास की परिभाषा, संवेगात्मक विकास की विशेषताएं, संवेग की विशेषताएं, संवेग के तत्व आदि का अध्ययन किया।

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