विकास की दिशा का सिद्धांत

हम जब बाल मनोविज्ञान (Child Psychology) में बाल विकास का अध्ययन करते हैं तो हमे पता चलता है कि बालक के विकास के सिद्धांत (Principles Of Development) भी होते हैं। उन्हीं सिद्धांतों में से एक है “विकास की दिशा का सिद्धांत”।

आइये जानते हैं कि क्या है ये विकास की दिशा का सिद्धांत?

विकास की दिशा का सिद्धांत – संक्षिप्त परिचय

बालक में विकास की दिशा के दो क्रम होते हैं-

  1. सिर से पैर की ओर
  2. शरीर के मध्य से बाहर की ओर

1- सिर से पैर की ओर

इसे “मस्तकेधोमुखी” भी कहते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार बालक का विकास सिर से पैर की ओर होता है। अर्थात पहले सिर बनता है, फिर बाकी के अंग पैर की ओर बनते जाते हैं। इस सिद्धांत को अंग्रेजी में Cephalo codal sequence of development कहते हैं।

ये भी पढ़ें -  UPTET/CTET Maths Study Material PDF in Hindi Download & Math Pedagogy Notes PDF in Hindi

2- शरीर के मध्य से बाहर की ओर

विकास की दिशा का यह क्रम शरीर के मध्य से बाहर बाहर की ओर होता है। अर्थात पहले स्पाइनल कॉर्ड बनेगी फिर हृदय और इसी क्रम में विकास होता चला जायेगा। इस विकास के क्रम को अंग्रेजी में Proximodistal sequence of development कहते हैं।

Final words-

तो दोस्तों ये था “विकास की दिशा का सिद्धान्त” जो कि बालक के विकास के सिद्धांत में से एक है। आपको निश्चित ही इससे विकास की दिशा का क्रम समझ में आ गया होगा।

अगर आपको यह आर्टिकल समझ मे आया हो तो आप इसे अपने दोस्तों को भी बता सकते हैं।

ये भी पढ़ें -  [Free Notes] Operation Black Board योजना क्या है?

ये भी पढ़ें-

>> सीटेट का सम्पूर्ण पाठ्यक्रम और अध्ययन सामग्री

>> सीटेट बाल विकास और शिक्षा शास्त्र की नोट्स हिंदी और अंग्रेजी दोनों में

>> सीटेट पर्यावरण की नोट्स NCERT नोट्स

>> uptet evs notes pdf

1 thought on “विकास की दिशा का सिद्धांत”

Leave a Comment