अधिगम के नियम : Tharndaik के अधिगम के नियम

अधिगम के नियम- प्रकृति में हर काम नियम से होता है। वो अलग बात है कि हम कुछ नियम समझ सकते हैं। कुछ नियमों का पालन कर सकते हैं। E.L. Tharndaik (थार्नडाइक) ने भी सीखने (अधिगम) के कुछ नियम बताएं। जिससे पढ़ने-पढ़ाने की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाया जा सके।

Tharndaik (थार्नडाइक) ने अधिगम के 3 मुख्य व 5 गौण नियम बताए हैं जो कि इस प्रकार हैं।

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अधिगम के नियम : Tharndaik के अधिगम के नियम

Tharndaik ने अधिगम के नियम दिए जो उसमे 3 मुख्य और 5 गौण थे।

Tharndaik (थार्नडाइक) के अधिगम के मुख्य नियम

  • तत्परता का नियम
  • अभ्यास का नियम
  • परिणाम का नियम/ प्रभाव का नियम / संतोष का नियम

1- तत्परता का नियम

इस नियम को इंग्लिश में प्रिंसिपल ऑफ रेडीनेस कहते हैं। तत्परता का नियम क्या कहता है? यह कहता है कि यदि बच्चे की किसी कार्य के प्रति रुचि है। तो वह उसको सीखने के लिए तत्पर रहेगा। और उस कार्य को जल्दी सीख जाएगा।

अतः जब बच्चे की सीखने की इच्छा होगी। तो वह कार्य शीघ्रता और कुशलता से सीखेगा। वह किसी काम को करने पर संतोष और सुखद अनुभव भी करेगा। इसके उलट यदि सीखने की इच्छा नही होगी। तो वह काम बिना रुचि के साथ करेगा। जिससे असन्तोष होगा।

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जैसे गणित के किसी को सवाल को करना हो। यदि रुचि है तो वे जल्दी सीख जाएगा अन्यथा नही। यही तत्परता का नियम है।

2- अभ्यास का नियम

अभ्यास व्यक्ति को कुशल बनाता है। कहते हैं न

करत-करत अभ्यास ते जड़ मति होत सुजान

और यह भी कि “Practice makes a man Perfect”.

यदि हम किसी कार्य को बार-बार करते हैं। तो उस कार्य को हम आसानी से और जल्दी सीख जाते हैं। कार्य को बार-बार करना ही अभ्यास है।

थॉर्नडाइक महोदय का कहना है कि हमे यदि कुछ नया और स्थायी रूप से सीखना है। तो हमे अभ्यास के द्वारा सीखना होगा। जैसे हम साइकिल चलाना सीखते हैं। या फिर बाइक चलाना सीखते हैं। तो अभ्यास द्वारा ही हम कुशलता पूर्वक सीख पाते हैं।

यदि हम बिना अभ्यास के कुछ सीखेंगे तो वह स्थायी नही अस्थायी होगा। अतः अभ्यास का नियम कहता है कि अभ्यास ज्ञान को स्थायी बनाता है।

3- परिणाम का नियम / प्रभाव का नियम / सन्तोष का नियम

थॉर्नडाइक महोदय कहते हैं कि हमे वो काम करने में ज़्यादा आनन्द आता है जिसका परिणाम सुखद होता है। अर्थात जिस कार्य के प्रभाव से हमे सुख व सन्तोष मिलता है। अतः परिणाम का नियम / प्रभाव का नियम / सन्तोष का नियम यही है।

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Tharndaik (थार्नडाइक) के अधिगम के गौण नियम

थॉर्नडाइक ने कुछ और नियम दिए जो मुख्य नियम से कम महत्वपूर्ण थे। इसे गौण नियम की संज्ञा दी गयी। ये 5 हैं-

  • मनोवृत्ति का नियम (Law of Disposition)
  • बहु अनुक्रिया का नियम (Law of Multiple Response)
  • आंशिक क्रिया का नियम (Law of Partial Activity)
  • अनुरूपता का नियम (Law of Analogy)
  • सम्बन्धित परिवर्तन का नियम (Law of Associative shifting)

1- मनोवृत्ति का नियम

इस नियम के अनुसार हम वही काम अच्छे से करते हैं या सीखते हैं । जिसकी करने की अभिवृत्ति या मनोवृत्ति रहती है। जिसको करने की अभिवृत्ति या मनोवृत्ति नही होती, हम उस कार्य को नही सीख पाते।

2- बहुअनुक्रिया का नियम

thorndike कहते हैं कि एक काम को सीखने के कई मार्ग होते हैं। अर्थात एक कार्य सीखने के लिए व्यक्ति कई अनुक्रियाएँ प्रकट करता है। कुछ अनुक्रियाएँ उपयोगी होती हैं। और कुछ नही होती हैं। तो जो अनुक्रियाएँ उपयोगी होती हैं । उसको लेकर कार्य को सीखा जाता है। जिससे सीखना आसान हो जाता है।

3- आंशिक क्रिया का नियम

इस नियम के अनुसार यदि हमें कुछ सीखना होता है। तो उसको हम छोटे-छोटे टुकड़े (अंश) में बांट कर सीखते हैं। जिससे सीखना सरल हो जाता है। इस प्रकार कार्य को छोटे-छोटे अंशों में विभाजित करने और उसको आसानी से सीखने की क्रिया ही “आंशिक क्रिया” कहलाती है। और इस नियम को आंशिक क्रिया का नियम कहते हैं।

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4- अनुरूपता का नियम

इस नियम के अनुसार जब व्यक्ति का किसी नई समस्या से सामना होता है। तो वह पूर्व अनुभवों और प्रयत्नों को याद करके उनसे समस्या की तुलना करता है। और फिर समाधान ढूंढने का प्रयास करता है। इसे ही अनुरूपता का नियम कहते हैं।

5- सम्बंधित परिवर्तन का नियम

इस नियम को साहचर्य परिवर्तन का नियम भी कहते हैं। इसके अनुसार कोई भी अनुक्रिया जिसे करने की क्षमता व्यक्ति में होती है, उसे एक नए उद्दीपन के द्वारा भी उत्पन्न की जा सकती है। इसमें क्रिया का स्वरूप वहीं रहता है पर परिस्थिति में परिवर्तन हो जाता है।

शिक्षक को कक्षा में अच्छी आदतों एवं सकारात्मक अभिरुचि को उत्पन्न करना चाहिए ताकि छात्र उनका उपयोग अन्य परिस्थितियों में भी कर सकें।

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