सच्चा मित्र हिंदी कहानी – True Friend Hindi Story

सच्चा मित्र – True Friend Ki Hindi Kahani 

नमस्कार प्रिय मित्रो हिंदी मेरी जान की एक और नयी हिंदी कहानी में आपका स्वागत है। दोस्तों आज की यह कहानी सच्ची मित्रता को दर्शाने के लिए प्रस्तुत की गई। आप कैसे अपने सच्चे और झूठे मित्रो में विभेद कर सकते है यह Hindi Kahani आपको बताएगी। तो चलिए कहानी की और बढ़ते है और मित्रता के रहस्य को समझने का प्रयास करते है !

सच्चा मित्र की कहानी- True Friend Story in Hindi

सच्चा मित्र हिंदी कहानी - True Friend Story in Hindi
सच्चा मित्र हिंदी कहानी – True Friend Story in Hindi

हमारे देश में एक नगर है – कन्नौज ! कभी उसके राजा का नाम था – चद्रापीड़। इन राजा जी के एक सेवक थे जिनका नाम धवलमुख था वह घर में कभी खाना नहीं खाता था हमेशा घर से बाहर ही भोजन करता था। 

एक दिन धवलमुख को उनकी पत्नी ने पूछा – ” रोज आपको खाना कौन खिलाता है ”

धवलमुख कहने लगा तुम नहीं जानती मेरे दो मित्र है एक का नाम है कल्याणवर्मा वह मुझे खूब पेट भरकर बढ़िया भोजन करवाता है। जबकि दूसरे दोस्त का नाम है वीरबाहु वह हमेशा मेरे लिए प्राण देने को तैयार रहता है। 

यह सब सुनने के बाद उसकी पत्नी बोली बड़े अचरज की बात है आपने कभी मुझे तो बताया ही नहीं ! न कभी उनसे मिलवाया ! कल अवश्य में आपके साथ चलूंगी। 

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धवलमुख ने उत्तर दिया ”हां जरूर चलना”

और अगले दिन वह अपनी पत्नी को साथ लेकर अपने मित्र कल्याणवर्मा के घर गया। कल्याणवर्मा अपने मित्र की पत्नी को देख बहुत प्रसन्न हुआ और उसने दोनों का खूब स्वागत किया। धवलमुख की पत्नी यह सब देख बहुत खुश हुई। 

दूसरे दिन वे दोनों वीरबाहु के घर गए। वे जब वहां पहुंचे तो वीरबाहु पासे खेल रहा था। उसने अपने मित्र और उसकी पत्नी को देखा तो उनके कुशल मंगल के समाचार पूछे और फिर से पहले की तरह पासे खेलने में लग गया। 

थोड़ी देर में धवलमुख अपनी पत्नी के साथ घर  लोट आया। पत्नी ने कहा आपके मित्र कल्याणवर्मा ने हमारा कितना अच्छा आदर सत्कार किया। लेकिन वीरबाहु ने तो केवल हमसे कुशल समाचार पूछे वह कैसे तुम्हारा बड़ा मित्र हुआ। 

धवलमुख मुस्कराया और बोला तुम उसकी परीक्षा लेनी चाहती हो ? ऐसा करो तुम अकेली उन दोनों के पास जाओ और उनसे कहो कि राजा मेरे पति से बहुत नाराज हो गया है। किसी तरह आप उनकी रक्षा कीजिये। इस पर जो वो कुछ कहेंगे या करेंगे उससे तुम्हे असलियत का पता लग जायेगा। 

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पत्नी ने ऐसा ही किया वह पहले कल्याणवर्मा के घर गई और उन्हें कहानी सुनाई। 

कल्याणवर्मा ने कहा देवी में वणिकपुत्र हूँ में राजा से कैसे लोहा ले सकता हूँ ऐसी स्थिति में तुम्हारे पुत्र की रक्षा नहीं कर पाउँगा। 

निराश होकर पत्नी वीरबाहु के पास पहुंची। उसने उसकी कहानी सुनते ही अपने हथियार संभाले और तुरंत धवलमुख के पास पहुंचा। धवलमुख ने वीरबाहु को बताया कि अभी अभी मुझे समाचार मिला है कि मंत्रियो ने राजा को सही-सही बात बता दी है राजा मुझ पर प्रसन्न हो गए है अब आपको कष्ट करने की आवश्यकता नहीं है। 

यह सुनकर बाहुबली वीरबाहु बहुत प्रसन्न हुआ। और अपने घर चला गया। 

तब धवलमुख ने अपनी पत्नी से कहा देखा तुमने मेरे इन दो मित्रो को। कितना और कैसा अंतर है इनमे। एक की दोस्ती केवल बाहरी शिष्टाचार मात्र है तथा दूसरे की दोस्ती सचमुच की दोस्ती है। चिकनाई दोनों में है लेकिन एक में तेल की तो दूसरे में देशी घी की चिकनाई है। 

प्यारे मित्रो बाहरी दिखावा देखकर ही सच्चे मित्र की पहचान नहीं की जा सकती उसके आंतरिक चरित्र, मन और कार्यो को देखकर सच्चे मित्र को पहचानने में सफलता मिल सकती है।

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