होली (Holi) की 3 महत्वपूर्ण कहानियां

होली(holi) पर प्रहलाद और होलिका की कहानी

एक छोटा सा बालक था जिसका नाम प्रहलाद था उसके पिता का नाम हिरण्यकश्यप था वो एक राजा था हिरण्यकश्यप नास्तिक था वो अपने आप को ही ईश्वर मानता था तथा सभी लोगो से खुद की आराधना करने को बोलता था । उसका पुत्र प्रहलाद विष्णु भगवान का उपासक था ये बात हिरणकश्यप को बिल्कुल भी नही पसंद थी उसने बहुत बार प्रहलाद को समझाया और ना मानने पर दंडित भी किया फिर भी प्रहलाद विष्णु भगवान की ही पूजा करता था उसके बाद हिरणकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ मिल कर प्रहलाद हो मारने की योजना बनाई होलिका को भगवान शंकर की तरफ से एक वरदान प्राप्त था जिसमे उसको एक चद्दर मिला था जिसे ओढ़ने के बाद अग्नि उसे नही जला सकती थी होलिका और प्रहलाद को जल्दी हुई अग्नि में बिठाया गया उसी समय हवा चली और वो चद्दर होलिका से जाकर प्रहलाद पे जा गिरी जिस वजह से प्रहलाद सकुशल बच गया और होलिका की जलकर मृत्यु हो गयी
यही कारण है कि होली बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष्य के रूप में बड़े धूम धाम से मनाया जाता हैं ।

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श्री कृष्णा और पूतना की कथा

भगवान श्री कृष्णा को उसके मामा कंस ने मारने के लिए पुतना राक्षसी को भेजा था पुतना राक्षसी सुंदर स्त्री का भेष रख कर बच्चों को दुग्ध पान कराया करती थी उसी बहाने वह बच्चों को बिष पिला कर मार देती थी यह बात जब श्री कृष्णा को पता चली तो जब वह श्री कृष्णा को दुग्ध पान कराने आई तो उन्होंने तब तक उसे नही छोड़ा जब तक कि खून नही निकल आया इस से पुतना राक्षसी की मृत्यु हो गई
इस प्रकार से होली पर्व अब पुतना राक्षसी की मृत्यु और कृष्णा की विजय के रूप में मनाते हैं

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दक्षिण भारत से संबंधित होली की कहानी

यह शिव और कामदेव से जुड़ी हुई कहानी हैं
कामदेव का धनुष ईख से बना था और उनका तीर हर दिल को प्यार से चीर देता था वसंत ऋतु के समय उनका मनोरंजन का साधन पक्षी , मनुष्य व पिशाच का शिकार करना था उन्होंने एक बार मनोरंजन के चक्कर मे एक गलत कार्य कर दिया जब भगवान शिव गहरी तपस्या में लीन थे तो उन्होंने तीर चला दिया उसके पश्चात भगवान शिव क्रुध्द होकर त्रिनेत्र खोल दिये जिस से काम देव भस्म हो गए उनकी पत्नी रति के बार बार अनुरोध करने पर भगवान शिव ने उन्हें दोबारा जीवित कर दिया परंतु एक शर्त थी कि तुम अपने पति को देख सकोगी परन्तु बिना शारीरिक रूप के ।

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दक्षिण भारत मे होली इसीलिए मनाई जाती हैं तथा रति की करुणा के गीत गाये जाते है ।

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